BHOPAL : बड़ा सवाल यही कि क्या ज्योतिरात्यि सिंधिया का भी भारतीय जनता पार्टी से मोहभंग हो गया है। क्या महाराष्ट्र की तरह ही मध्य प्रदेश में भी राजनीतिक चाल चली थी। क्या ज्योतिरात्यि सिधिंया खुद बीजेपी छोड़ने से पहले अपने खास लोगों को कांग्रेस ज्वाइन करवा रहे हैं।
एंगल बहुत से है बातें बहुत सी हो रही है लेकिन मध्य प्रदेश की सियासी चौसर पर चल रहा राजनीत का खेल दिलचस्प हो रहा है। मामा के हाथों मात खाये कमलनाथ ने बीजेपी को दूसरा बड़ा झटका दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के बचपन के दोस्त बालेंदु शुक्ला ने बीजेपी और ज्योतिराज्य का साथ छोड़कर कांग्रेस में घर वापसी कर ली।
बालेंदु शुक्ला मध्य प्रदेश में कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे। राज्य के ब्राह्मण मतदाताओं पर उनकी अच्छी पकड़ बताई जाती है। वे 13 साल तक अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री रहे।
बालेंदु शुक्ला पूर्व केंद्रीय मंत्री और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के बचपन के दोस्त थे, और सिंधिया घराने के करीबी और भरोसेमंद माने जाने हैं। बालेंदु शुक्ला के साथ आज 2018 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से मेहगांव से चुनाव लड़े सुरेश सिंह ने भी कांग्रेस में शामिल हो गए।
बालेंदु शुक्ला ने सन 1980 से 2003 के बीच कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लगातार छह बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इसमें से वे तीन चुनाव जीते। इतना ही नहीं 1980 से 1998 के बीच ग्वालियर की गिर्द विधानसभा सीट( वर्तमान भितरवार सीट) से 5 चुनाव लड़े जिनमें तीन बार वो जीते और दो बार पराजित हुए। बालेंदु ने कांग्रेस के टिकट पर आखिरी चुनाव ग्वालियर विधानसभा सीट से 2003 में लड़ा था।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस में वापसी के बाद वे ग्वालियर पूर्व विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी भी हो सकते हैं।माना जा रहा है कि बालेंदु शुक्ला ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर-चंबल इलाके में कम से कम 12 विधानसभाओं में ब्राह्मण मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं।